Monday, March 30, 2009

भूख से मरते बच्चों के लिए लेनिन ने छेड़ी मुहिम


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भूख से मरते बच्चों के लिए लेनिन ने छेड़ी मुहिम
आईबीएन-7


भूख से होने वाली मौतों की खबर लेनिन अक्सर अखबारों में पढ़ते हैं। सोनभद्र। आदिवासियों के विकास के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाईं लेकिन इन योजनाओं का फायदा भ्रष्ट अधिकारियों को मिलता है और आदिवासी बद से बदतर हालात में जीते हैं। प्रशासन की इसी बेरुखी की वजह से उत्तर प्रदेश के एक गांव में लोग भूख से मरने लगे। ऐसे में सिटीजन जर्नलिस्ट डॉ. लेनिन ने इस मामले को उठाया और इन लोगों को रोटी का हक दिलाया।


डॉ. लेनिन पेशे से एक डॉक्टर हैं। उनकी लड़ाई एक ऐसे मुद्दे को लेकर है जिसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सर शर्म से झुका दिया है। बात कर रहे हैं भूख से होने वाली मौत की और उन लोगों के हक की जो लोग दो वक्त की रोटी के लिए भी तरसते हैं।


भूख से होने वाली मौतों की खबर लेनिन अक्सर अखबारों में पढ़ते हैं। 2005 में सोनभद्र जिले के एक गांव की ऐसी ही एक खबर उन्होंने अखबार में पढ़ी। सोनभद्र के रॉप गांव में भूख के कारण 16 बच्चों की मौत हो गई। लेनिन ये सोच कर हैरान रह जाते हैं कि संसाधनों और विकास की तमाम योजनाओं के बावजूद कैसे लोग भूख से बेमौत मर जाते हैं।


फिर उन्होंने रॉप गांव जाने का फैसला किया। इस गांव में तकरीबन 72 परिवार रहते हैं जो कि घसिया आदिवासी जनजाति से सबंध रखते हैं। लेनिन ने देखा इस गांव में लोगों की हालत काफी खराब थी। 16 बच्चे मौत की आगोश में सो चुके थे और दो बच्चे गंभीर रूप से बीमार थे।


इन लोगों को एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं थी जिस वजह से इन्हें अपनी भूख मिटाने के लिए पेड़ के पत्ते खाने पड़ते थे। यहां अधिकतर बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जिसका कारण था खाने की कमी। पैसे की तंगी के कारण इन लोगों के बीपीएल कार्ड भी नहीं बने थे। लेकिन प्रशासन सोया रहा और लोग बेमौत मरते रहे।


प्रशासन कहता है कि ये मौत कुपोषण के कारण हो रही हैं। लेकिन सच ये है कि जो लोग कई दिनों तक खाना नहीं खाते उनके लिए कुपोषण एक बीमारी नहीं बल्कि मजबूरी है। डॉ. लेनिन ने इस समस्या के हर पहलू को बारीकी से समझा और एक रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट को उन्होंने मानवाधिकार आयोग के सामने पेश किया।


मानवाधिकार आयोग ने भी माना कि मामला कुपोषण का नहीं भूखमरी का है। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एक नोटिस भेजा गया। नोटिस मिलते ही सोया हुआ प्रशासन जाग गया। और उसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने बच्चों के इलाज के लिए गांव में कैंप लगाया। 154 घरों में अनाज का इंतजाम किया गया और इसके साथ ही इन आदिवासियों के बीपीएल कार्ड भी बने।


भूखमरी सीधे तौर पर कमाई और रोजगार से जुड़ी है। रॉप गांव में एक भी व्यक्ति पढ़ा लिखा नहीं है। लोगों के पास रोजगार नहीं और उनमें जागरूकक की कमी है। ये लोग अपने अधिकारों के बारे में भी नहीं जानते। कुछ लोगों मदद से डॉ. लेनिन ने यहां एक स्कूल बनवाया। भविष्य में कोई भी भूख के कारण मौत का शिकार न हो इसके लिए उन्होंने यहां अनाज बैंक का निर्माण कराया। लोगों के सहयोग से लेनिन ने 4 रिक्शा 100 बकरियां आदिवासियों के रोजगार के लिए उपलब्ध कराए ताकि ये लोग आत्म निर्भर बन सकें।


भूख से मरते लोग भारत की एक शर्मनाक हकीकत हैं। सवाल ये है कि जब सरकार ने इनके लिए योजनाएं बनायी हैं तो ये योजनाएं इन लोगों तक क्यों नहीं पहुंचतीं। दो वक्त की रोटी हर आदमी का बुनियादी हक है और ये सरकार की जिम्मेदारी है कि हर आदमी को उसका बुनियादी हक मिले।

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